मन का परिंदा कहीं दूर उड़ना चाहे
एक डोर खींचे है तुम्हारी ओर
एक डोर कहे चल दूर चल
छोड़ दे सब मोह माया को, तोड़ से सब रिश्तों को
है सब यह एक मिथ्या ही, करते हैं और दूर मंजिल को
मन का परिंदा कहीं दूर उड़ना चाहे
लगता है जान लिया सब दुनिया को , खेल है और कुछ नहीं
जानना है अब अपने अस्तित्व को , क्यूँ है क्या है व्यक्तित्व को
इच्छा है उसे समझने की , जिससे आई मैं , जिसमें मिल जाना है
क्यूँ बनाया जो बनाया उसने , आखिर ध्येय क्या है इस जन्म में
मन का परिंदा कहीं दूर उड़ना चाहे
चक्रव्यूह है , संसार यह , तोडना है या मिल जाना इसमें
होगा सब अब तेय यहीं , करना क्या है मुझको इसमें
मनुष्य मैं , है मुझको अधिकार , करना होगा मुझको विचार
मैं बन पाऊँ अनादी या .........बन जाऊं संसार
स्वाति
Mere man ka paridna kab ka ud gaya :)
ReplyDeleteCheers
Chintu Singh
hehehe! I agree with Chintu Singh!
ReplyDeletebtw, When u said in ur post that u've de-followed some of the blogs, I was sure to have been one of them. But, seeing you still in my blog followers, I felt flattered. Thanks for the compliment. :) :P
ReplyDeleteAnd also, having said that, I completely believe that a blog should be followed only if you like reading it. Not for formalities or for returning favors. More often than not, these stats are not accurate and in a way, demeaning. There are fair chances that people who're following you are doing it only for keeping friends with you. And the people who actually like reading you, don't even follow but visit often, and leave a genuine comment, whenever they feel like.
I think you should value them more.:)